सियासी-फ़सल -२५

परिशिष्ट
पत्रकारिता में आने से पहले से मैं स्वामी विवेकानन्द , महात्मा गांधी और उनके मानव प्रेम से प्रभावित रहा हूँ। बचपने में आनंद समाज वाचनालय में कहानी की पुस्तकें पढ़ने जाते- जाते पता नहीं कब मैं आज़ादी की लड़ाई में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले सेनानियो से प्रभावित होता चला गया। दादी के साथ विवेकानंद आश्रम भी नियमित ही जाता रहा तो पड़ोसी स्व. हरी ठाकुर के साथ बैठकर अपनी जिज्ञासा शांत करता । घर के सामने ही गद्दा - तकिया बनाने वाले मुस्लिम लड़कों के साथ खेलकूद , लड़ाई-झगड़ा होते ही रहता। तो मोमिन पारा के शिया मुसलमानो के साथ  भी मेरी बैठकी होती । यहाँ तक कि उनके साथ न “ नोहा” भी पढ़ लेता । “ नोहा” भी लिखने लगा। और इमामबाड़े में भी नोहा पढ़ा। पत्रकारिता  के दौरान सामाजिक ताना-बाना और धर्म निरपेक्षता को बनाए रखने न केवल मैंने कई जगह व्याख्यान भी दिए बल्कि इसे लेकर सजग भी रहा। मेरी ख़बरों में भी मेरी प्रतिबद्दता देखी जा सकती है।
इस पुस्तक में मेरी पत्रकारिता के दौरान लिखे उन लेखों और ख़बरों को भी समाहित कर रहा हूँ , जो इस देश की धर्म निरपेक्षता के प्रति मेरी सोच का सफ़र नामा है ।

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