फसाना
कश्मीर का वो नक्शा, जो आप बचपन से देखते आये है।
फिर पता चला कि इसको कुछ पाकिस्तान ने कब्जा लिया है, कुछ चीन ने। आपको बुरा लगा। फिर जब यह पता लगा कि नेहरू ने सब प्लेट में रखकर बांट दिया, आपके गुस्से का ठिकाना न रहा। आप अभी तक गुस्से में फनफना रहे हैं।
शांत भीमसेन शांत। तुम्हे झूठ बोलकर ठगा गया है।
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ये जो खसरा नक्शा है, वो कश्मीर स्टेट का है। इस पर हरिसिंह का राज था। वो नक्शा जरूर हाथ मे लेकर हिला रहे थे। मगर जमीन पर सत्ता केवल जम्मू कश्मीर और लद्दाख में थी। वो हिस्सा अभी भी तुम्हारा ही है भीम .. राजा के पास जो नही था, न वो दे सकता था, न तुम ले सकते थे।
1. पश्चिम, याने नक्शे के लेफ्ट में हरा गिलगित बाल्टिस्तान 1930 से अंग्रेजो को लीज पर था।अंग्रेज 47 में गए, तो गिलगित के अफसर कश्मीर राजा के अंडर जाना नहीं चाहते थे। वो विद्रोह करके ऑफिशयली पाकिस्तान से मिल गए।
3. पूर्व में याने नक्शे के राइट में कश्मीर राजा की चौकी लद्दाख तक थी। आगे रेगिस्तान था, जिस पर न आबादी थी, न रियासत का प्रशासन। यही इलाका अक्साई चिन है। तो यहां भी राजा का मुक्कमल कब्जा नही था।
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पाकिस्तान को हरा वाला गिलगित बाल्टिस्तान मिल चुका था। अब बाकी चाहिए था।
अटैक किया तो राजा ने भारत से मदद मांगी। भारत ने पहले विलय साइन करवाया, तब सेना भेजी।
विलय में नक्शा नत्थी हुआ। वही, जिसके आधे से ज्यादा में राजा कब्जा नही था। इत्ता टाइम नही था कि पटवारी बुलाकर सीमांकन करवाया जाता। जो नक्शा था, रख लिए और सेना भेज दी गयी।
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जब सेना पहुची, पाकिस्तानी कबायली श्रीनगर आ चुके थे। उन्हें धकेला गया। पीछे-पीछे- पीछे-धकेल-धकेल-धकेल कर नीला हिस्सा बढ़ाया गया। 10 जिले जीते, लेकिन 4 जिले रह गए। जो नीचे हरी दुम की तरह का हिस्सा है। वे नीचे के चार जिले ही टेक्निकली पीओके है, पूरा हरा नही जो आप समझते है।
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अब जब जितनी जमीन बल-जोर से जीत सकते थे, जीत लिए। बाकी का कब्जा लेने के लिए पटवारी नक्शा और रजिस्ट्री का कागज (विलय पत्र) लेकर सदल बल पहुंचे ग्राम पंचायत (यूएन) के पास..
पंचायत ने कहा, दोनो पार्टी कब्जा पूरा कब्जा खाली करो, फिर देखूंगा किसे कब्जा देना है। दुन्नो पार्टी बोले - हौ ..
खाली किन्ने नई किया। अपना अपना कब्जा धरे बैठे रहे। 70 साल निकल गए।
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इधर 1952 में पता चला कि चीन रेगिस्तान में सड़क बना लिया है। रोड नक्शे में आपको हल्की सी दिखेगी। हम लद्दाख से आगे बढ़े और ऊपर सियाचिन से नीचे तक पूरा एरिया को ठीक से कब्जे में लिए। असल कब्जे का इलाका बढ़ा। यही फारवर्ड पॉलिसी थी, जिस चक्कर मे 1962 हुआ।
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मोरल ऑफ द स्टोरी - हरिसिंह के नक्शे को बचपन से देख देख कर आपको चाहे जो लगता हो, हरिसिंह के असलियत के राज्य से ज्यादा हमारा कब्जा है।
नेहरू ने किसी को कुछ दिया तो वह इंडिया था, जिसे कश्मीर दिया। लिया तो वह कश्मीर राजा था, और था पाकिस्तान जिससे 10 जिले वापस छीने, और सिक्यूर किया लद्दाख से आगे का रेगिस्तानी इलाका, जिसका एक टुकड़ा चीन प्राणपण से रक्षा कर रहा है।
यही सच है, इसके सिवा कुछ और सच नही है। ये क्यो किया, वो क्यो नही किया। ऐसा करना था, वैसा होना था। मैं होता, तो ऐसा करता, तुम होती तो ऐसा होता। तुम ये कहती मैं वो कहता, मैं औऱ मेरी तन्हाई, अक्सर बाते करते है।
तन्हाई में बातें करने वाले, आज भी बस नेहरू को गरियाते है और मन की बात करते है।
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किसी को डाउट हो तो सवालों का स्वागत है।
✍️Manish singh
फिर पता चला कि इसको कुछ पाकिस्तान ने कब्जा लिया है, कुछ चीन ने। आपको बुरा लगा। फिर जब यह पता लगा कि नेहरू ने सब प्लेट में रखकर बांट दिया, आपके गुस्से का ठिकाना न रहा। आप अभी तक गुस्से में फनफना रहे हैं।
शांत भीमसेन शांत। तुम्हे झूठ बोलकर ठगा गया है।
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ये जो खसरा नक्शा है, वो कश्मीर स्टेट का है। इस पर हरिसिंह का राज था। वो नक्शा जरूर हाथ मे लेकर हिला रहे थे। मगर जमीन पर सत्ता केवल जम्मू कश्मीर और लद्दाख में थी। वो हिस्सा अभी भी तुम्हारा ही है भीम .. राजा के पास जो नही था, न वो दे सकता था, न तुम ले सकते थे।
1. पश्चिम, याने नक्शे के लेफ्ट में हरा गिलगित बाल्टिस्तान 1930 से अंग्रेजो को लीज पर था।अंग्रेज 47 में गए, तो गिलगित के अफसर कश्मीर राजा के अंडर जाना नहीं चाहते थे। वो विद्रोह करके ऑफिशयली पाकिस्तान से मिल गए।
3. पूर्व में याने नक्शे के राइट में कश्मीर राजा की चौकी लद्दाख तक थी। आगे रेगिस्तान था, जिस पर न आबादी थी, न रियासत का प्रशासन। यही इलाका अक्साई चिन है। तो यहां भी राजा का मुक्कमल कब्जा नही था।
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पाकिस्तान को हरा वाला गिलगित बाल्टिस्तान मिल चुका था। अब बाकी चाहिए था।
अटैक किया तो राजा ने भारत से मदद मांगी। भारत ने पहले विलय साइन करवाया, तब सेना भेजी।
विलय में नक्शा नत्थी हुआ। वही, जिसके आधे से ज्यादा में राजा कब्जा नही था। इत्ता टाइम नही था कि पटवारी बुलाकर सीमांकन करवाया जाता। जो नक्शा था, रख लिए और सेना भेज दी गयी।
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जब सेना पहुची, पाकिस्तानी कबायली श्रीनगर आ चुके थे। उन्हें धकेला गया। पीछे-पीछे- पीछे-धकेल-धकेल-धकेल कर नीला हिस्सा बढ़ाया गया। 10 जिले जीते, लेकिन 4 जिले रह गए। जो नीचे हरी दुम की तरह का हिस्सा है। वे नीचे के चार जिले ही टेक्निकली पीओके है, पूरा हरा नही जो आप समझते है।
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अब जब जितनी जमीन बल-जोर से जीत सकते थे, जीत लिए। बाकी का कब्जा लेने के लिए पटवारी नक्शा और रजिस्ट्री का कागज (विलय पत्र) लेकर सदल बल पहुंचे ग्राम पंचायत (यूएन) के पास..
पंचायत ने कहा, दोनो पार्टी कब्जा पूरा कब्जा खाली करो, फिर देखूंगा किसे कब्जा देना है। दुन्नो पार्टी बोले - हौ ..
खाली किन्ने नई किया। अपना अपना कब्जा धरे बैठे रहे। 70 साल निकल गए।
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इधर 1952 में पता चला कि चीन रेगिस्तान में सड़क बना लिया है। रोड नक्शे में आपको हल्की सी दिखेगी। हम लद्दाख से आगे बढ़े और ऊपर सियाचिन से नीचे तक पूरा एरिया को ठीक से कब्जे में लिए। असल कब्जे का इलाका बढ़ा। यही फारवर्ड पॉलिसी थी, जिस चक्कर मे 1962 हुआ।
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मोरल ऑफ द स्टोरी - हरिसिंह के नक्शे को बचपन से देख देख कर आपको चाहे जो लगता हो, हरिसिंह के असलियत के राज्य से ज्यादा हमारा कब्जा है।
नेहरू ने किसी को कुछ दिया तो वह इंडिया था, जिसे कश्मीर दिया। लिया तो वह कश्मीर राजा था, और था पाकिस्तान जिससे 10 जिले वापस छीने, और सिक्यूर किया लद्दाख से आगे का रेगिस्तानी इलाका, जिसका एक टुकड़ा चीन प्राणपण से रक्षा कर रहा है।
यही सच है, इसके सिवा कुछ और सच नही है। ये क्यो किया, वो क्यो नही किया। ऐसा करना था, वैसा होना था। मैं होता, तो ऐसा करता, तुम होती तो ऐसा होता। तुम ये कहती मैं वो कहता, मैं औऱ मेरी तन्हाई, अक्सर बाते करते है।
तन्हाई में बातें करने वाले, आज भी बस नेहरू को गरियाते है और मन की बात करते है।
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किसी को डाउट हो तो सवालों का स्वागत है।
✍️Manish singh
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