सियासी-फ़सल -२४

यही नहीं मुसलमानो ने हिंदुओ के बहुत से त्यौहारों को मनाने लग गए। दीपावली, होली, राखी से लेकर रावण दहन ही नहीं दुर्गोत्सव और गणेशोत्सव में भी उनकी भागीदारी साफ़ दिखने लगा था। मुसलमानो में रक्षा बंधन का त्यौहार तो सर्वाधिक लोकप्रिय हुआ।
इसी तरह आर सी मजूमदार ने मुग़ल सल्तनत द्वारा दशहरा उत्सव को मनाए जाने पर लिखते हैं-
दशहरे के त्यौहार पर शाही हाथियों और घोड़ों को नहला-धुला कर , चमकाकर और सजाकर बादशाह के निरीक्षण के लिए क़तारबद्ध खड़ा किया जाता था। यहीं नहीं दीपावली में जुआँ खेलने की परम्परा को जहांगीर भी पसंद करते थे। अकबर गोवर्धन पूजा के उत्सव पर भाग लिया करते थे। यही नहीं सूर्य ग्रहण और चंद्र ग्रहण में हिंदुओ के स्नान के लिए हरिद्वार , काशी और प्रयाग में गंगा तट पर विशेष व्यवस्था की जाती थी।
मौजूदा दौर में भी हिंदू त्यौहारों में अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों की हिस्सेदारी विशिष्ट रही है। आज भी राखी के त्यौहार में एक धर्म के लोग दूसरे धर्म के लोगों के साथ रक्षा बंधन का त्यौहार तो मनाते ही है, अधिकांश अल्पसंख्यकों के घरों में भी बहन अपने भाईयों को राखी बाँधते हैं।
समाज ने हमेशा ही जोड़ने का काम किया है। तीज त्यौहार और सुख दुःख के अवसरों पर सामूहिक रूप से हिस्सेदारी ने धर्म के भेद को कम किया है। लेकिन मौजूदा राजनीति जिस तरह से बेमतलब के मुद्दों को हवा दे रही है , उससे समाज में नये नये विवाद उत्पन्न हुए हैं। मध्ययुगिन इतिहास से लेकर आधुनिक इतिहास में जब जब राजनीति हावी रही , तब तब तनाव ही पैदा हुए हैं और इससे नुक़सान आम जनता को ही हुआ है।
उग्र हिंदू संगठन जिस तरह से अपनी राजनीति की रोटी सेकने के लिए ग़ैर ज़रूरी बातों को जिस तरह से प्रचारित और प्रसारित करता है, उसके ख़िलाफ़ कठोर क़ानून बनाने चाहिए।
आज हिंदू- मुस्लिम या मानव एकता की खिल्ली उड़ाई जाती है। आज इस देश में सभी समुदाय जिस जीवन मूल्यों के साथ देश की प्रगति के लिए काम कर रहे है , उसमें बाधा डालने की कोशिश में झूठ और अफ़वाहों को प्रचारित किया जाता है। समय चक्र जिस साँझी एकता को समाप्त नहीं कर सका , उसे जानबूझकर खंडित करने की कोशिश हो रही है। इस देश को धर्म निरपेक्ष बनाने विवेकानंद से गांधी अम्बेडकर नेहरु पटेल ने जो योगदान दिया , उन्ही महान पुरुषों को हिंदुस्तान का ग़द्दार साबित करने की कोशिश में उग्र हिंदू संगठन जिस तरह से अफ़वाह फैला रहा है उससे देश के विकास में बाधा उत्पन्न हो रही है । साम्प्रदायिक भेदभाव की खाई को चौड़ा करने से इस देश का जो नुक़सान होगा इसकी चिंता किसे है। एक दूसरे को नीचा दिखाने की प्रवृति बढ़ते जा रही है , जिससे देश  का सामाजिक ताना बाना तो प्रभावित हुआ ही विश्व पटल में भी भारत की छवि  को धक्का लगा है।
मशहूर फ़्रेंच विद्वान आमप्रे मालरो ने अपनी पुस्तक “ एंटी मेमोरिज” में नेहरु से पूछे सवाल का ज़िक्र करते हुए कहा है कि नेहरु से जब पूछा गया कि प्रधान मंत्री के तौर पर उनके सामने सबसे बड़ी समस्या क्या है? तो नेहरु ने कहा कि-
शांतिपूर्ण तरीको से एक न्यायपूर्ण समाज की स्थापना करना और एक धार्मिक समाज में एक धर्म निरपेक्ष समाज स्थापित करना।
लेकिन उग्र हिंदू संगठनों को लगता है कि यदि भारत को हिंदू राष्ट्र नहीं बनाया गया तो आने वाले दिनो में हिंदुत्व समाप्त हो जाएगा। जबकि हक़ीक़त यह है कि जिन देशों में धर्म और वर्ण के आधार पर राजनीति हो रही है , उन देशों की दुर्दशा हो रही है। रूस और पूर्वी यूरोप में निरीश्वरवादी कम्यूनिजम की पराजय से यह साबित कर दिया है कि महात्मा गांधी का मार्ग ही सही है, मानव विकास के लिए धर्म और राष्ट्र -राज व्यवस्था दोनो की ज़रूरत है। संघर्ष तब उभरते हैं जब बहुसंख्यक समाज अपने अधीनस्थ अल्पसंख्यकों को शारीरिक या राजनैतिक रूप से दबाना या प्रताड़ित करना चाहते हैं। लेकिन दुर्भाग्य है कि उग्र हिंदू संगठन महात्मा गांधी के जीवन सिद्धांत का न केवल प्रखर विरोध करते हैं बल्कि कई समस्याओं के लिए उन्हें ज़िम्मेदार ठहराते हैं।
सत्ता के लिए सियासी दाँव में घृणा को एक शक्तिशाली हथियार की तरह इस्तेमाल किया गया। लेकिन घृणा की शैतानी लू जाति-धर्म नहीं देखता। उसकी चपेट में जो भी आता है तबाह हो जाता है। इतिहास गवाह है कि राष्ट्रीयता के नाम पर हिटलर, मुस्सोलिनी, नेपोलियन या स्टालिन ने क्या कुछ नहीं किया , लेकिन सत्ता में बने रहने के नाम पर इन लोगों ने अपने ही लोगों पर भयानक तबाही ढाही थी। और उग्र हिंदू संगठन भी सत्ता के लिए दूसरे राजनैतिक दलो को देश द्रोही बता ही रहे हैं। उनके प्रति आम लोगों में घृणा भी भर रहे हैं ।
इसलिए अब यह ज़रूरी हो गया है कि देश की धर्मनिरपेक्षता को बनाए रखने क़ानून कड़े बनाए जाए। बल्कि अफ़वाह और झूठ का सहारा लेने वालों के ख़िलाफ़ कड़ी कार्रवाई करे।

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