सियासी-फ़सल -१२

विश्व हिंदू परिषद का यह अभियान पूरे देश में चलाया गया। इस अभियान को गति देने भाजपा भी शामिल हो गई। भाजपा भी इस मुद्दे को ज़ोरशोर से उठाकर हिंदू वोटों के ध्रुवीकरण में लग गई लेकिन 31 अक्टूबर 1984 को प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की उनके ही अंगरक्षको द्वारा हत्या कर दी गई । भारतीय इतिहास का वह कलंकित दिन था । सिख आतंकवादियों ने पाकिस्तान के इशारे पर जिस तरह का ख़ूनी खेल खेला था उसके बाद इंदिरा द्वारा चलाये आपरेशन ब्लू स्टार से सिख नाराज़ थे। सभी तरह की गुप्तचर एजेंसियों ने इंदिरा को अपने सुरक्षा दस्ते से सिख सिपाहियों को हटा देने का आग्रह किया था। लेकिन इंदिरा ने यह कहते हुए सिख सिपाहियों  हटाने से मना कर दिया था   कि वे पूरे सिख समाज पर अविश्वास नहीं कर सकती । यह भारत के धर्म निरपेक्ष छवि के ख़िलाफ़ है।
एक दिन पहले इंदिरा ने अपने उड़ीसा दौरे में कहा कहा था -"मैं आज यहां हूं। कल शायद यहां न रहूं। मुझे चिंता नहीं मैं रहूं या न रहूं। मेरा लंबा जीवन रहा है और मुझे इस बात का गर्व है कि मैंने अपना पूरा जीवन अपने लोगों की सेवा में बिताया है। मैं अपनी आखिरी सांस तक ऐसा करती रहूंगी और जब मैं मरूंगी तो मेरे ख़ून का एक-एक क़तरा भारत को मजबूत करने में लगेगा।"
इस हत्या के बाद सिखों के ख़िलाफ़ दंगा भड़क गया। 8 नवम्बर को नानाजी देशमुख ने जार्ज फ़र्नांडीज़ के अख़बार प्रतिपक्ष में सिखों के ख़िलाफ़ भड़काऊ लेख लिखकर मानो सिख दंगो का समर्थन कर दिया तो माँ की मृत्यु से आहत राजीव गांधी ने 13 नवम्बर को दिल्ली में इंदिरा जी की जयंतिपर सिख दंगो को लेकर अपने भाषण में कहा कि - जब बड़ा पेड़ गिरता है तो धरती हिलती है। लेकिन सिख दंगे ने पूरे देश को हिलाकर रख दिया । इसके बाद हुए चुनाव में कांग्रेस साढ़े चार सौ सीट जीत गई। यह देश का इंदिरा को श्रद्धांजलि थी। राजीव गांधी के प्रधान मंत्री बनने के बाद हिंदू संगठनों का अभियान तब और मुखर हो गया जब शाहबानो प्रकरण में सुप्रीम कोर्ट ने भरण पोषण देने का आदेश दे दिया। मुसलमानो ने इसे शरीयत क़ानून का उल्लंघन बताते हुए प्रदर्शन करना शुरू किया तो राजीव सरकार ने बहुमत के दम पर संविधान संशोधन कर दिया।
इस संविधान संशोधन ने हिंदू संगठनों और भाजपा को मुद्दा दे दिया। मुस्लिम तुष्टिकरण का आरोप लगाकर भाजपा और मुखर हो गई। आने वाले चुनाव में हिंदू वोट खिसकने की सम्भावना से घबराई कांग्रेस ने हिंदुओ को ख़ुश करने न केवल राममंदिर का ताला खुलवाने का आदेश दे दिया विश्व हिंदू परिषद को शिलान्यास की अनुमति दे दी । लेकिन यह निर्णय ख़तरनाक हो गया । दंगे हुए और एक बार फिर मरने वालों के आँकड़े से देश दहल गया।
इस सबके बावजूद राजीव सरकार को हार का सामना करना पड़ा। और फिर वह दशक आया, जो हिंदू मुस्लिम एकतता को सबसे बड़ा आघात पहुँचाया।
भाजपा हिंदू वोट के ध्रुवीकरण और वी पी सिंह के मुस्लिम वोट के साथ मिलकर कांग्रेस को सत्ता से बाहर रखने में कामयाब हो गई । वी पी सिंह के जनता दल और भाजपा की मिली जुली सरकार के दौरान भाजपा ने राम मंदिर को लेकर हुंकार भरीऔर अपने को ऐसे पेश की कि वह मंदिर के लिए सरकार को क़ुर्बान कर सकती है । और भाजपा नेता लाल कृष्ण आडवाणी ने पूरे देश में माहौल बनाने रथयात्रा की घोषणा कर दी। बाबरी मस्जिद को हटाने और राम मंदिर बनाने के हुंकार से देश भर में तनाव का वातावरण बनने लगा। और आडवाणी की रथयात्रा से सम्भावित ख़ून ख़राबे को देखते हुए रथ यात्रा जब बिहार पहुँचा तो रोक दिया गया। लेकिन रथ यात्रा को रोकने का अर्थ भाजपा को रोकना साबित हो गया । भाजपा ने वी पी सिंह सरकार से समर्थन वापस ले लिया और देश को यह सोचकर चुनाव में झोंक दिया कि इस बार वह सरकार बना लेगी लेकिन इस चुनाव में भी वह सत्ता से दूर रही। और कांग्रेस के नरसिंह राव के नेतृत्व में सरकार बनी।
यह वह दौर था जब भाजपा को राम मंदिर के अलावा कुछ नहीं दिख रहा था। आडवाणी , मुरली मनोहर जोशी, विनय कटियार, अशोक सिंघल, उमा भारती, साध्वी रितंभरा , बजरंग दल, विहिप, शिव सैनिको ने अयोध्या में कार सेवा की घोषणा कर दी। राजस्थान , यूपी, मध्यप्रदेश में भाजपा की सरकार ने न केवल इसका समर्थन किया बल्कि बड़ी संख्या में लोगों को अयोध्या पहुँचने में मदद की। प्रधानमंत्री राव नकी सरकार ने कोर्ट को बाबरी मस्जिद की सुरक्षा की गारंटी दी । यूपी के कल्याण सिंह सरकार ने भी आश्वासन दिया।
लेकिन उग्र हिंदुओ ने जैसे तय कर लिया था कि वह न सरकार की सुनेगी न संसद की , न ही सुप्रीम कोर्ट की ही सुनेगी। उमा भारती तो बाबरी मस्जिद में ही चढ़ गई। और मस्जिद को विंध्वस्त कर दिया गया। सदियों की परम्पराएँ चकनाचूर हो गई। धर्म सेवकों के भेष में इतिहास शर्मसार हो गया।
इस घटना से पूरा देश दहल गया। अटल बिहारी वाजपेई की आँखे भर आई , आडवाणी ने लोकसभा में विपक्ष के नेता के पद से त्याग पत्र दे दिया। उमा भारती ने कहा-ये मेरी ज़िंदगी का चरम आनंदमय दिन है, मैं तो बार-बार अपने को चिकोटि काटकर यह अहसास कराती हूँ कि हाँ मैं जगी हुई हूँ ( इंडिया टुडे 31 दिसम्बर 1992)
हिंदू संगठनों की हुंकार साफ़ सुनाई दे रही थी, कि वे अतीत के मुसलमान शासकों के हाथों हुई हिंदू राजाओं की हार का प्रतिशोध लेने लालायित हैं।
6 दिसम्बर 1992 की इस घटना का कलकत्ता की साप्ताहिक पत्रिका “ संडे” के 13-19 दिसम्बर के अंक में तस्वीरों के साथ टिप्पणी थी-
कुछ हज़ार गुंडो ने , धर्म सेवकों के भेष में इतिहास को अपनी गंदी-घिनौनी उँगलियों से दबोच लिया, सदियों की परम्परा को लोहे के सलाखों से चकनाचूर किया और उस ढाँचे को जो आधुनिक भारतीय राजनीति का एक लाक्षनिक प्रतीक बन चुका था, ध्वस्त कर दिया... कोई भी भारतीय जो उस काले रविवार के दिन ज़िन्दा था उसे आजीवन नहीं भूल पाएगा। और कोई भी ऐसा भारतीय , जिसमें ज़रा सी आत्मगौरव है, उस कांड के बाद अपनी शर्म को छिपा नहीं पाएगा।
दरअसल इस बाबरी विध्वंस के दौरान अनियंत्रित भीड़ की आड़ में कट्टर हिंदुओ ने जिसे भी अपना दुश्मन समझा उसे अपना निशाना बनाया। मीडिया कर्मियों के साथ जानवरो की तरह व्यवहार किया । त्रिशूल , भाला, तलवार, धनुष-बाण , लाठी-डंडे सहित कई तरह के हथियारों से लैस इन लोगों के निशाने पर मीडिया इसलिए रही कि वे घटना का कोई सबूत नहीं छोड़ना चाह रहे थे। और अपने अपराध से भयभीत चेहरा छिपाने मीडिया पर हमला कर रहे थे। “ द पायोनियर के प्रवीण जैन की पिटाई की गई, पत्रकारों को फ़ोटोग्राफ़रो को मुस्लिम बता कर निशाना बनाया जा रहा था। मीडिया कर्मियों को लोहे के राड, लाठी-डंडो से ऐसे पिटा जा रहा था, मानो वे मध्ययुगिन किसी राजा के सिपाही हो और मीडिया कर्मी किसी मुस्लिम राजा के सिपाही हो। यहाँ तक कि संस्कार की दुहाई देने वाले ये हिंदू अतिवादी महिला- मीडिया कर्मियों को भी नहीं बख़्स रहे थे।
बिज़नेस इंडिया की रुचिरा गुप्ता ने बताया- मैं उनसे कहती रही, मैं जर्नलिस्ट हूँ, रुचिरा गुप्ता हूँ लेकिन, वे चिल्लाते रहे मुसलमान-मुसलमान (संडे 13-19 दिसम्बर 1992) ।

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