सियासी-फ़सल -१६
दरअसल हिंदुत्व के नाम पर हाल के सालों में जिस तरह की राजनीति को बढ़ावा दिया गया, उसकी वजह से भी नई-नई समस्याए पैदा हुई। भाजपा और शिवसेना ने तो कांग्रेस पर मुस्लिम तुष्टिकरण का आरोप ज़ोरदार ढंग से लगाया तो लाल कृष्ण आडवाणी ने इसे अल्पसंख्यकवाद का नाम दिया। हर जगह यही समझाया गया कि अल्पसंख्यकों को कांग्रेस के द्वारा अनुचित लाभ दिया जाता है। आधा सच को इस तरह से रेखांकित किया गया कि हिंदुओ को लगने लगा कि सचमुच उनके अपने ही देश में उनकी अपनी उपेक्षा हो रही है।
हिंदू संगठन शाहबानो मामले में मुस्लिम तुष्टिकरण की बात ज़ोर शोर से उठाते हैं। जबकि हिंदुओ की माँग पर स्पेशल मैरिज एक्ट 1954 में संशोधन कर टैक्स सुविधाओं के लिए हिंदू संयुक्त परिवार की अवधारणा को बरक़रार रखा। इसी तरह सलमान रुशदी की किताब पर लगाई गई पाबंदी को भी तुष्टिकरण का नाम दिया गया। लेकिन उसी दौर में उसी सरकार ने आब्ररी मेनन के “ राक रिरोल्ट” और स्टेनली के “ नाईन अवर्स टू राम “ के पाबंदी पर वही लोग ख़ामोश रहते हैं।
आज़ादी के बाद ऐसे जितने ही निर्णय लिए गए जिससे सभी धर्म की भावना को ठेस न पहुँचे लेकिन अल्पसंख्यकों की भावना पर लिए गए निर्णयो को साम्प्रदायिक और तुष्टिकरण का रंग दिया गया। ताकि हिन्दुओं को वोट बैंक बनाकर इस्तेमाल किया जा सके।
ऐसा ही मामला धर्मान्तरण से जुड़ा मामला है।
साम्प्रदायिक ताक़तों के लिए तो धर्मान्तरण ऐसा हथियार हो गया है जो हिंदुओ को उन्माद में लाने के लिए ही किया जाता है। मुस्लिम शासनकाल में तलवार के दम पर और अंग्रेज़ी शासनकाल में लालच देकर हिंदुओ को धर्मान्तरित करने की बात ज़ोर शोर से उठाया जाता है।
और वर्तमान में ईसाई मिशनरीज़ और कथित लव ज़ेहाद का मुद्दा साम्प्रदायिक ताक़तों का प्रमुख हथियार है। धर्मान्तरण के मुद्दों को लेकर भारतीय जनता पार्टी भी बेहद मुखर है। ईसाई मिशनरीज़ द्वारा धर्मान्तरण पर हिंदू संगठन सीधा हमलावर रही है । हिंदू संगठनों का धर्मान्तरण को लेकर अपना दावा है । यह सच है कि इस देश में ग्रामीण और आदिवासी अंचलो में ईसाई मिशनरीज़ का प्रभाव ज़बरदस्त है, और यह भी सर्वविदित है कि आज़ादी के बाद बड़ी संख्या में दलित और आदिवासियों ने ईसाई धर्म क़बूल किया है। लेकिन क्या वे सिर्फ़ लालच में आकर ईसाई बने हैं ? यह कहना बेहद मुश्किल है।
ईसाई मिशनरीज़ इस देश के कई इलाक़ों में शिक्षा और चिकित्सा के क्षेत्र में कार्य करती है। दूरस्थ आदिवासी क्षेत्र जहाँ सरकार की व्यवस्था नहीं पहुँच पाती वहाँ मिशनरीज़ से जुड़े लोग स्कूल-अस्पताल और चर्च खोल चुके हैं। चूँकि इस देश में दलित और आदिवासी बेहद ग़रीब पिछड़े और उपेक्षित है वहाँ मिशनरीज़ कार्य करते हैं।
सुदूर ग्रामीण क्षेत्र में सेवा की आड़ में धर्मान्तरण किए जाने को लेकर हिंदू संगठन की उग्रता 1980 के बाद बढ़ी है । और चर्चों पर हमले कर मिशनरीज़ से जुड़े लोगों की हत्या तक बड़े पैमाने पर होते रही है ।
छुआछूत के नाम पर दलित अत्याचार की कहानी नई नहीं है। दलितों को प्रताड़ित करने की वजह से भी धर्म परिवर्तन किए जाने का मामला सामने आ चुका है। लेकिन हिंदू संगठन यह मानने को तैयार नहीं है कि सवर्ण हिंदुओ के रवैए की वजह से भी इस देश में दलितों ने बड़ी संख्या में धर्म परिवर्तन किए हैं।
डॉक्टर अम्बेडकर ने हिंदू धर्म की रीति नीति को त्यागकर बौद्ध धर्म अपनाया तो उनके साथ लाखों लोग हिंदू धर्म छोड़कर चले गए। हिंदू संगठनों के धर्मान्तरण को लेकर किए जा रहे हमलों से ईसाई समाज भी भयाक्रांत हैं। आए दिन धर्मान्तरण को लेकर चर्चों पर हमले होते रहते हैं। सरकारी तौर पर ज़बरिया धर्म परिवर्तन या लालच देकर धर्म परिवर्तन का इक्का दुक्का मामला भी सामने आया है। लेकिन हिंदू संगठनों का रवैया बेहद कठोर है और वे धर्मान्तरित लोगों के लिए घर - वापसी जैसे मुहिम भी चलाते हैं।
हाल ही में अप्रेल 2021 में महाराष्ट्र के पालघर में गाँव वालों द्वारा दो साधुओं की निर्मम हत्या को लेकर हिंदू संगठनों ने पहले सरकार को बदनाम करने मुस्लिमों का करतूत बताया फिर जब आरोपी गिरफ़्तार हो गए तो इसे भी धर्मान्तरण से जोड़ा जाने लगा लेकिन सच तो यह है कि यह हत्याकांड हिंदू संगठनों द्वारा भीड़ को उकसाने का जो खेल शुरू किया गया यह उसी का दुष्परिणाम है।
दूसरी तरफ़ मुसलमानो पर लव जेहाद के नाम पर धर्म परिवर्तन कराने का आरोप है। हिंदू संगठन तो यहाँ तक दावा करता है कि मुसलमान युवकों को जानबूझकर हिंदू युवतियों से प्रेम करके शादी करने के लिए प्रेरित किया जाता है और शादी के बाद हिंदू युवतियों को इस्लाम क़बूलने प्रताड़ित किया जाता है। नब्बे के दशक में लव जेहाद का नया शिगूफ़ा हिंदू संगठनों ने छोड़ा और यहाँ तक अफ़वाह फैलाने में सफल हुए कि लव जेहाद के लिए विदेशों से धन आता है। हालाँकि शादी के बाद कुछ युवतियों को इस्लाम क़बूल करने के लिए दबाव डालने की शिकायत आई है लेकिन विदेशों से धन भेजकर साज़िशन लव जेहाद का कोई सबूत नहीं है। लव जेहाद का शिगूफ़ा भाजपा भी सत्ता में नहीं होती है , तभी उठाती है।जबकि लव मैरिज में युवाओं का युवतियों पर अपने समाज या जाति को अपनाने का दबाव स्वाभाविक है।
इस तरह की ग़लत अवधारणा फैलाने की वजह से भी धर्म निरपेक्षता को ख़तरा उत्पन्न हो गया है। इस मामले में जिस तरह का झूठा और मिथ्या प्रचार किया गया कि कई हिंदू परिवार भी इस लव जेहाद की बातों में आ गए।
मेरठ के संदीप पहल बजरंग दल की तरफ़ से लव जेहाद और घर वापसी की मुहिम में सक्रिय रहते थे लेकिन अब वो मायूस है क्योंकि उनके अनुसार इन मुद्दों का सियासी पार्टियों ने अपने फ़ायदे के लिए इस्तेमाल किया। (बीबीसी 2 अप्रेल 2019) ।
चूँकि धर्मान्तरण और लव जेहाद के मामले में हिंदू संगठनों का झूठ , अफ़वाह और प्रपंच ही ज़्यादा रहा है और सभी जानते है कि यह सियासी ड्रामा के अलावा कुछ नहीं है इसलिए भाजपा को छोड़ दूसरी पार्टियाँ इस पर प्रतिक्रिया नहीं देती तो इन पार्टियों पर तुष्टिकरण का आरोप लगाया जाता है ।
हिंदू संगठन शाहबानो मामले में मुस्लिम तुष्टिकरण की बात ज़ोर शोर से उठाते हैं। जबकि हिंदुओ की माँग पर स्पेशल मैरिज एक्ट 1954 में संशोधन कर टैक्स सुविधाओं के लिए हिंदू संयुक्त परिवार की अवधारणा को बरक़रार रखा। इसी तरह सलमान रुशदी की किताब पर लगाई गई पाबंदी को भी तुष्टिकरण का नाम दिया गया। लेकिन उसी दौर में उसी सरकार ने आब्ररी मेनन के “ राक रिरोल्ट” और स्टेनली के “ नाईन अवर्स टू राम “ के पाबंदी पर वही लोग ख़ामोश रहते हैं।
आज़ादी के बाद ऐसे जितने ही निर्णय लिए गए जिससे सभी धर्म की भावना को ठेस न पहुँचे लेकिन अल्पसंख्यकों की भावना पर लिए गए निर्णयो को साम्प्रदायिक और तुष्टिकरण का रंग दिया गया। ताकि हिन्दुओं को वोट बैंक बनाकर इस्तेमाल किया जा सके।
ऐसा ही मामला धर्मान्तरण से जुड़ा मामला है।
साम्प्रदायिक ताक़तों के लिए तो धर्मान्तरण ऐसा हथियार हो गया है जो हिंदुओ को उन्माद में लाने के लिए ही किया जाता है। मुस्लिम शासनकाल में तलवार के दम पर और अंग्रेज़ी शासनकाल में लालच देकर हिंदुओ को धर्मान्तरित करने की बात ज़ोर शोर से उठाया जाता है।
और वर्तमान में ईसाई मिशनरीज़ और कथित लव ज़ेहाद का मुद्दा साम्प्रदायिक ताक़तों का प्रमुख हथियार है। धर्मान्तरण के मुद्दों को लेकर भारतीय जनता पार्टी भी बेहद मुखर है। ईसाई मिशनरीज़ द्वारा धर्मान्तरण पर हिंदू संगठन सीधा हमलावर रही है । हिंदू संगठनों का धर्मान्तरण को लेकर अपना दावा है । यह सच है कि इस देश में ग्रामीण और आदिवासी अंचलो में ईसाई मिशनरीज़ का प्रभाव ज़बरदस्त है, और यह भी सर्वविदित है कि आज़ादी के बाद बड़ी संख्या में दलित और आदिवासियों ने ईसाई धर्म क़बूल किया है। लेकिन क्या वे सिर्फ़ लालच में आकर ईसाई बने हैं ? यह कहना बेहद मुश्किल है।
ईसाई मिशनरीज़ इस देश के कई इलाक़ों में शिक्षा और चिकित्सा के क्षेत्र में कार्य करती है। दूरस्थ आदिवासी क्षेत्र जहाँ सरकार की व्यवस्था नहीं पहुँच पाती वहाँ मिशनरीज़ से जुड़े लोग स्कूल-अस्पताल और चर्च खोल चुके हैं। चूँकि इस देश में दलित और आदिवासी बेहद ग़रीब पिछड़े और उपेक्षित है वहाँ मिशनरीज़ कार्य करते हैं।
सुदूर ग्रामीण क्षेत्र में सेवा की आड़ में धर्मान्तरण किए जाने को लेकर हिंदू संगठन की उग्रता 1980 के बाद बढ़ी है । और चर्चों पर हमले कर मिशनरीज़ से जुड़े लोगों की हत्या तक बड़े पैमाने पर होते रही है ।
छुआछूत के नाम पर दलित अत्याचार की कहानी नई नहीं है। दलितों को प्रताड़ित करने की वजह से भी धर्म परिवर्तन किए जाने का मामला सामने आ चुका है। लेकिन हिंदू संगठन यह मानने को तैयार नहीं है कि सवर्ण हिंदुओ के रवैए की वजह से भी इस देश में दलितों ने बड़ी संख्या में धर्म परिवर्तन किए हैं।
डॉक्टर अम्बेडकर ने हिंदू धर्म की रीति नीति को त्यागकर बौद्ध धर्म अपनाया तो उनके साथ लाखों लोग हिंदू धर्म छोड़कर चले गए। हिंदू संगठनों के धर्मान्तरण को लेकर किए जा रहे हमलों से ईसाई समाज भी भयाक्रांत हैं। आए दिन धर्मान्तरण को लेकर चर्चों पर हमले होते रहते हैं। सरकारी तौर पर ज़बरिया धर्म परिवर्तन या लालच देकर धर्म परिवर्तन का इक्का दुक्का मामला भी सामने आया है। लेकिन हिंदू संगठनों का रवैया बेहद कठोर है और वे धर्मान्तरित लोगों के लिए घर - वापसी जैसे मुहिम भी चलाते हैं।
हाल ही में अप्रेल 2021 में महाराष्ट्र के पालघर में गाँव वालों द्वारा दो साधुओं की निर्मम हत्या को लेकर हिंदू संगठनों ने पहले सरकार को बदनाम करने मुस्लिमों का करतूत बताया फिर जब आरोपी गिरफ़्तार हो गए तो इसे भी धर्मान्तरण से जोड़ा जाने लगा लेकिन सच तो यह है कि यह हत्याकांड हिंदू संगठनों द्वारा भीड़ को उकसाने का जो खेल शुरू किया गया यह उसी का दुष्परिणाम है।
दूसरी तरफ़ मुसलमानो पर लव जेहाद के नाम पर धर्म परिवर्तन कराने का आरोप है। हिंदू संगठन तो यहाँ तक दावा करता है कि मुसलमान युवकों को जानबूझकर हिंदू युवतियों से प्रेम करके शादी करने के लिए प्रेरित किया जाता है और शादी के बाद हिंदू युवतियों को इस्लाम क़बूलने प्रताड़ित किया जाता है। नब्बे के दशक में लव जेहाद का नया शिगूफ़ा हिंदू संगठनों ने छोड़ा और यहाँ तक अफ़वाह फैलाने में सफल हुए कि लव जेहाद के लिए विदेशों से धन आता है। हालाँकि शादी के बाद कुछ युवतियों को इस्लाम क़बूल करने के लिए दबाव डालने की शिकायत आई है लेकिन विदेशों से धन भेजकर साज़िशन लव जेहाद का कोई सबूत नहीं है। लव जेहाद का शिगूफ़ा भाजपा भी सत्ता में नहीं होती है , तभी उठाती है।जबकि लव मैरिज में युवाओं का युवतियों पर अपने समाज या जाति को अपनाने का दबाव स्वाभाविक है।
इस तरह की ग़लत अवधारणा फैलाने की वजह से भी धर्म निरपेक्षता को ख़तरा उत्पन्न हो गया है। इस मामले में जिस तरह का झूठा और मिथ्या प्रचार किया गया कि कई हिंदू परिवार भी इस लव जेहाद की बातों में आ गए।
मेरठ के संदीप पहल बजरंग दल की तरफ़ से लव जेहाद और घर वापसी की मुहिम में सक्रिय रहते थे लेकिन अब वो मायूस है क्योंकि उनके अनुसार इन मुद्दों का सियासी पार्टियों ने अपने फ़ायदे के लिए इस्तेमाल किया। (बीबीसी 2 अप्रेल 2019) ।
चूँकि धर्मान्तरण और लव जेहाद के मामले में हिंदू संगठनों का झूठ , अफ़वाह और प्रपंच ही ज़्यादा रहा है और सभी जानते है कि यह सियासी ड्रामा के अलावा कुछ नहीं है इसलिए भाजपा को छोड़ दूसरी पार्टियाँ इस पर प्रतिक्रिया नहीं देती तो इन पार्टियों पर तुष्टिकरण का आरोप लगाया जाता है ।
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